Tuesday, November 30, 2010


मैं बाहर खड़ा बारिश मैं ,उन हसीन लम्हो को याद करता हू,पानी की टपकती बूँदो बीच उन्ही यादो मैं फिर खो जाना चाहता हू....कभी लड़ा करते थे....आज उन्ही दोस्तो के साथ अक पल बिताने को दिल तरसता हू....एक प्यारी सी मुश्कूरहट होंटो पर आती है... ओर ये आँखे नाम हो जाती है.....ज्ब उन यादो को समतने की कोशिश करता हू...तो ताम सा जाता हू...सयद हम अपने लक्ष्या को पाने मैं इतना खो गये है खुद को बड़ा समझ दोस्त का हाल तक पूछना भूल गये है....जो दोस्ती लगती थी पक्की आज उसे भोझ समझ घसीट ते रहे है...काश हम वेस ही रहते वैसे ही हाँश्ते ओर वैसे ही छोटी छोटी बात पर लड़ते ....आज इसी बात का अफ़सोश म्ना रहा हू..इस बारिश खुद को कम ओर आँखो को ज्यदा भोगो रहा हू .........

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