Thursday, December 2, 2010

भारतीय पुलिस ने भी ख़रीदी है जादुई छड़ी?

ADE651ब्रिटेन में इन दिनों इराक़ युद्ध के बारे में एक जाँच आयोग की सुनवाई में ये बात एक बार फिर स्पष्ट हो रही है कि 11 सितंबर 2001 के हमलों से कई महीने पहले से ही अमरीका इराक़ पर हमले की योजना बना रहा था.

ज़ाहिर है अमरीकी सरकार ने ऊर्जा सुरक्षा या ईरान को घेरने जैसे बड़े सामरिक लक्ष्यों पर विचार कर इराक़ पर हमले की योजना बनाई होगी. बड़े सामरिक लक्ष्य दीर्घावधि के होते हैं जो कि कई बार पूरे होते भी नहीं. लेकिन हमले का शिकार बने किसी देश को लूटे जाने का सिलसिला पहले ही दिन से शुरू हो जाता है. इराक़ में भी यही हो रहा है. इस लूट में मुख्य रूप से अमरीका और ब्रिटेन की सुरक्षा कंपनियाँ भाग ले रही हैं.

इसी महीने न्यूयॉर्क टाइम्स ने इराक़ को 8 करोड़ डॉलर का चूना लगाए जाने के एक विचित्र-किंतु-सत्य टाइप प्रकरण को उजागर किया था. उसके बाद में ब्रिटेन के गार्डियन और टाइम्स जैसे अख़बारों ने इस मामले में आगे छानबीन की. अब जाकर इराक़ी संसद की नींद टूटी है, और उसने पूरे मामले की जाँच की घोषणा की है.

मामला ब्रिटेन की एक निजी कंपनी का है जिसने इराक़ को ऐसी जादुई छड़ी की खेप बेची जो कि कथित रूप से बम, गोला-बारूद, हथियार, नशीले पदार्थ, अवैध हाथी दाँत जैसी तमाम चीजों का पाँच किलोमीटर तक की दूरी से पता लगा लेती है.

कथित चमत्कारी उपकरण को देखने से तो यही लगता है कि प्लास्टिक के एक हत्थे पर रेडियो वाला सामान्य टेलीस्कोपिक एंटीना लगा दिया गया हो. इस उपकरण का नाम है ADE651. इसकी अलग-अलग आकार और कथित क्षमता वाली डेढ़ हज़ार यूनिट इराक़ सरकार को बेची गई हैं, प्रति नग 60 हज़ार डॉलर तक के दाम में.

उल्लेखनीय है कि इराक़ में तैनात अमरीकी सेना ADE651 का इस्तेमाल नहीं करती है. वरिष्ठ अमरीकी सैनिक अधिकारियों ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया कि ये उपकरण किसी भी काम का नहीं है और 60 हज़ार डॉलर में तो गोला-बारूद का पता लगाने मे निपुण पाँच से आठ प्रशिक्षित कुत्ते खरीदे जा सकते हैं. जब अख़बार ने ये सुझाव इराक़ के बमरोधी पुलिस विभाग के प्रमुख मेजर जनरल जेहाद अल-जबीरी के सामने रखा तो उनका जवाब बेमिसाल था- "आप बग़दाद के 400 सुरक्षा चौकियों पर कुत्तों की तैनाती के बारे में सोच भी सकते हैं? शहर एक चिड़ियाघर में तब्दील हो जाएगा."

ADE651 बनाने वाली कंपनी ATSC का अपने उत्पाद के बारे में दावा गज़ब का है- 'ADE651 से बम, बंदूक, कारतूस, मादक पदार्थ, लाश यहाँ तक कि हाथी दाँत का भी पता चल सकता है. ये ज़मीन के नीचे, पानी में या दीवारों के पीछे छुपी इन चीज़ों का एक किलोमीटर दूर से पता लगा सकता है. जहाँ तक हवा की बात है तो इस उपकरण के ज़रिए नीचे ज़मीन से ही पाँच किलोमीटर ऊपर उड़ रहे विमान में इन चीज़ों का पता लगाया जा सकता है.'

इस उपकरण की एक और विचित्र विशेषता है- 'इसे काम करने के लिए न किसी बैटरी की ज़रूरत होती है और न ही ऊर्जा के किसी अन्य प्रकार की.'

इतना ही नहीं ADE651 में कोई इलेक्ट्रॉनिक सर्किट भी नहीं है. इसके काम करने का तरीक़ा भी बड़ा सरल बताया गया है. एंटीना यूनिट तार के ज़रिए प्लास्टिक के डिब्बे से जुड़ा होता है जिसके खांचे में उस चीज़ के गुणों से युक्त(electromagnetic resonance) प्लास्टिक का एक कार्ड लगता है जिसकी कि तलाश की जानी हो. मतलब यदि बारूद का पता लगाना हो तो बारूद के विशेष भौतिक गुणों से युक्त कार्ड खांचे में डलेगा. बारूद वाले उदाहरण को ही आगे बढ़ाएँ तो आप एंटीना को सतह के क्षैतिज पकड़े रहें, बस. यदि एक किलोमीटर की दायरे में कहीं बारूद रहा तो एंटीना ख़ुद-ब-ख़ुद उस ओर झुक जाएगा!

ब्रितानी अख़बार टाइम्स का पत्रकार जब ATSC के कर्ताधर्ता पूर्व पुलिस अधिकारी जिम मैक्कॉर्मिक से मिलने गया तो उसने पत्रकार को ADE651 का इस्तेमाल करने दिया. लेकिन उपकरण उसके कार्यालय जैसी छोटी-सी जगह में छुपाए गए बारूद का पता लगाने में भी नाकाम रहा. रही बात इराक़ में ADE651 के 'असल प्रभाव' की तो उसके लिए पिछले महीने का एक उदाहरण ही काफ़ी होगा. 25 अक्तूबर को बग़दाद में एक आत्मघाती हमलावर ने तीन मंत्रालयों की इमारतों को ध्वस्त करते हुए 155 लोगों को मार डाला था. हमलावर ADE651 उपकरण से लैस एक चेकपोस्ट से हो कर दो टन बारूद से भरा ट्रक ले गया था! इसी तरह न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने दो लोगों को AK47 राइफ़लों और कारतूसों के साथ ADE651 का इस्तेमाल करने वाली नौ इराक़ी पुलिस चौकियों से होकर गुजारा, एक भी जगह जादुई छड़ी को हथियारों की हवा नहीं लगी.

अमरीकी जादूगर जेम्स रैंडी ने ADE651 की निर्माता कंपनी ATSC को खुली चुनौती दे रखी है कि वो वैज्ञानिक जाँच में ये दिखा दे कि उसका उपकरण सचमुच में बारूद का पता लगा लेता है तो वह उसे 10 लाख डॉलर देंगे. साल भर बीत चुका है लेकिन ATSC ने रैंडी की चुनौती को स्वीकार नहीं किया है. अब रैंडी ने चुनौती का दायरा और बढ़ा दिया है. उनका कहना है कि ADE651 और कुछ नहीं बल्कि शुद्ध जालसाज़ी है. यदि आप उनके इस विश्वास को ग़लत साबित कर सकें तो 10 लाख डॉलर का पुरस्कार आपका!

ये कोई संयोग नहीं है कि किसी भी विकसित देश की सेना या पुलिस इस उपकरण का इस्तेमाल नहीं करती. सिर्फ़ कुछ विकासशील देशों में ही इसे बेचा जा सका है. लंदन के टाइम्स अख़बार से बातचीत में ATSC के मालिक मैककॉर्निक ने अपने ग्राहकों में भारत की पुलिस का भी नाम गिनाया है. कंपनी की वेबसाइट अभी डाउन चल रही है, वरना ये जानना रोचक होगा कि भारत के किस राज्य की पुलिस ने जादुई छड़ी ख़रीदी है !

Tuesday, November 30, 2010


मैं बाहर खड़ा बारिश मैं ,उन हसीन लम्हो को याद करता हू,पानी की टपकती बूँदो बीच उन्ही यादो मैं फिर खो जाना चाहता हू....कभी लड़ा करते थे....आज उन्ही दोस्तो के साथ अक पल बिताने को दिल तरसता हू....एक प्यारी सी मुश्कूरहट होंटो पर आती है... ओर ये आँखे नाम हो जाती है.....ज्ब उन यादो को समतने की कोशिश करता हू...तो ताम सा जाता हू...सयद हम अपने लक्ष्या को पाने मैं इतना खो गये है खुद को बड़ा समझ दोस्त का हाल तक पूछना भूल गये है....जो दोस्ती लगती थी पक्की आज उसे भोझ समझ घसीट ते रहे है...काश हम वेस ही रहते वैसे ही हाँश्ते ओर वैसे ही छोटी छोटी बात पर लड़ते ....आज इसी बात का अफ़सोश म्ना रहा हू..इस बारिश खुद को कम ओर आँखो को ज्यदा भोगो रहा हू .........

Monday, November 29, 2010

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आतंकी ढेर

कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा मलदोरी वडर जंगल में रविवार रात को हुई मुठभेड़ में मारा गया लश्कर का आतंकी अब्दुल रहमान। अब्दुल लश्कर का कमांडर था

Saturday, November 27, 2010

दलाई लामा से 'दोस्‍ती' पर 42 अरब रुपये की चपत दे सकता है ची

Source: Venkatesan Vembu, DNA | Last Updated 14:57(27/11/10)

हांगकांग. चीन अपनी आर्थिक हैसियत का इस्तेमाल अपने राजनैतिक फायदे के लिए कर रहा है। अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन उन देशों के साथ व्यापार कम कर देता है जो देश तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा का स्वागत करते हैं। इस संबंध में की गई स्टडी के मुताबिक दुनिया के वे देश जो दलाई लामा की मेजबानी करते हैं उनपर चीन अपनी आर्थिक ताकत की धौंस जमाता है। ऐसे देशों द्वारा चीन के लिए होने वाले निर्यात पर ८.१ % से १६.९ % तक का असर पड़ता है। इस स्टडी को आधार मानकर ८ फीसदी के हिसाब से असर का आकलन करने पर भारत को ही करीब ४२ अरब रुपये का घाटा होने का आंकड़ा सामने आता है। भारत द्वारा चीन को करीब ३ खरब ३७ अरब रुपये का निर्यात किया जाता है।

शोधकर्ताओं एंड्रियस फच्स और निल्स हेंड्रिक क्लैन के मुताबिक अगर किसी देश का राजनीतिक नेतृत्व दलाई लामा का स्वागत करता है तो चीन उस देश द्वारा किए जाने वाले निर्यात में कटौती करता है। कटौती का दायरा दलाई लामा का स्वागत करने वाले नेता के कद पर निर्भर करता है। अगर देश की आर्थिक हैसियत अच्छी है तो उसका असर ज़्यादा होगा और अगर देश कमजोर है तो असर कम होगा। शोधकर्ताओं के मुताबिक दलाई लामा का स्वागत करने वाले देशों को चीन की आर्थिक मार करीब दो साल झेलनी पड़ती है।

गोटिनजन यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं एंड्रियस फच्स और निल्स हेंड्रिक क्लैन ने चीन के साथ दुनिया के १५९ देशों के व्यापार संबंधों पर शोध कर यह निष्कर्ष निकाला है। गौरतलब है कि तिब्बत की आज़ादी के लिए दलाई लामा लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। वे भारत में राजनैतिक शरण लिए हुए हैं। तिब्बत पर चीन का नियंत्रण है।

दलाई लामा से कतराते हैं एशियाई देश
स्टडी के मुताबिक तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा का स्वागत करने में एशियाई देश कतराते हैं। गोटिनजन यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं एंड्रियस फच्स और निल्स हेंड्रिक क्लैन के मुताबिक चीन से नजदीक और सीमाएं साझा करने वाले देश चीन के साथ किसी भी तरह का विवाद नहीं चाहते हैं। उनके मुताबिक यही वजह है कि ज़्यादातर एशियाई देश दलाई लामा को अपने यहां आमंत्रित नहीं करते हैं।

चीन को भी होता है घाटा
दूसरे देशों के निर्यात घटाने से चीन द्वारा किए जाने वाले निर्यात पर भी असर पड़ता है। जानकार मानते हैं कि चीन की अंदरूनी राजनीति पर ऐसे फैसलों का सकारात्मक असर पड़ता है। यही वजह है कि चीन अपना नुकसान होने के बावजूद इसी नीति पर अमल करता है।

(फोटो कैप्‍शन: पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ दलाई लामा की फाइल फोटो)